याद्दाश्त सुधारनी है, तो रोज़ पियो कोको

17/08/2013 13:14
कोको फली

रोज़ कोको पीने से बुजुर्गों का दिमाग स्वस्थ रह सकता है.

यह अनुमान एक शोध के हैं जिसमें ऐसे 60 बुजुर्गों को शामिल किया गया था जिन्हें यह दिक्कत शुरू हो रही थी.

इसमें कहा गया कि एक दिन में कोको के दो कप दिमाग में रक्त प्रवाह बेहतर करते हैं.

जनरल न्यूरोलॉजी के अनुसार शोध में पाया गया कि जिन लोगों के दिमाग में रक्त प्रवाह बेहतर हुआ है उन्होंने शोध के अंत में स्मृति परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन किया.

विशेषज्ञों का कहना है कि निष्कर्ष देने से पहले और अनुसंधान करने की ज़रूरत है.

छोटा लेकिन महत्वपूर्ण

ऐसा नहीं है कि कोको को पहली बार नाड़ी संबंधी स्वास्थ्य से जोड़ा गया है. शोधकर्ताओं को यकीन है कि इसकी कुछ वजह इसका फ्लेवेनॉल से भरपूर होना है, जिसका पर महत्पूर्ण असर माना जाता है.

इस ताज़ा शोध में 73 साल की औसत आयु वाले 60 लोगों को रोज़ दो कप पीने के लिए दिया गया.

इन्हें दो समूहों में विभाजित कर एक समूह को भरपूर फ्लेवेनॉल और दूसरे को कम फ़्लेवेनॉल वाला कोको पीने को दिया गया. इन्हें किसी और तरह से चॉकलेट का सेवन नहीं करना था.

शोध की शुरुआत में किए गए अल्ट्रासाउंड से पता चला कि उनमें से 17 के दिमाग में रक्त प्रवाह कमज़ोर था.

भरपूर या कम फ्लेवेनॉल वाला कोको पीने वाले समूहों में कोई फ़र्क नहीं था.

                                                                                                                                       कोको

                                                                                                                                      विशेषज्ञों का मानना है कि कोको से इलाज काफ़ी लोकप्रिय हो सकता है

शोध की शुरुआत में कमज़ोर रक्त प्रवाह वाले प्रतिभागियों में से 88% के रक्तप्रवाह में सुधार देखा गया. इसके मुकाबले सामान्य रक्त प्रवाह वाले प्रतिभागियों पर असर 37% ही था.

24 प्रतिभागियों के एमआरआई स्कैन से पता चला कि कमज़ोर रक्त प्रवाह वाले लोगों को छोटे से होने की आशंका भी ज़्यादा थी.

हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल में न्यूरोलॉजिस्ट और शोध लेखक डॉ फ़ारज़ानेह सोरोन्ड कहते हैं, “हम दिमाग में रक्त के प्रवाह और उसके सोचने की क्षमता पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सीख रहे हैं.”

वह कहते हैं, “दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को अपना काम करने के लिए ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत पड़ती है. उन्हें ज़्यादा रक्त प्रवाह की भी ज़रूरत पड़ती है. इस संबंध को न्यूरोवस्कुलर कपलिंग कहा जाता है. यह जैसी बीमारियों के इलाज में में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.”

शोधकर्ताओं का कहना है कि भरपूर या कम फ्लेवेनॉल वाले कोको में फ़र्क इसलिए कम पड़ा होगा क्योंकि पेय का दूसरा घटक असर कर रहा होगा या फिर छोटी मात्रा की ही ज़रूरत होगी.

अल्ज़ाइमर्स शोध ब्रिटेन में शोध प्रमुख डॉ सिमॉन रिडले कहते हैं कि यह एक छोटा शोध था लेकिन इसने काफ़ी तथ्य जुटाए हैं.

वह कहते हैं, “कोको पर आधारित इलाज काफ़ी लोकप्रिय हो सकता है लेकिन इसके असर के बारे में कोई भी निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी हो सकती है.”

इसके साथ ही वह कहते हैं, “नाड़ियों की कमज़ोरी मनोभ्रंश का एक पहचाना हुआ ख़तरा है और इसे समझकर हम नाड़ी की दिक्कत और कमज़ोर होती मानसिक स्थिति के बीच संबंध के बारे में ज़्यादा जान सकते हैं, इससे हमें नए इलाज और बचाव की खोज में मदद मिलेगी.”